भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कहाँ हार कर जा रहा है / देवी नांगरानी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:24, 9 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देवी नांगरानी |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहाँ हार कर जा रहा है दिवाने
हैं कितने अभी इम्तिहाँ, कौन जाने

कभी साथ चलने का वादा किया था
तो क्यों साथ अब छोड़ने के बहाने

भरोसा था दोनों का इक दूसरे पर
ग़लतफहमियाँ आईं कैसे न जाने ?

चमन छोड़ कर जा रहे हैं परिंदे
ख़बर है जलेंगे यहाँ आशियाने

सहर से हुई दोपहर अब तो ‘देवी’
कहाँ शाम होगी ये भगवान जाने