भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सफर सूए-मंज़िल चला रफ्ता-रफ्ता / देवी नांगरानी
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:23, 9 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देवी नांगरानी |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पन्ना बनाया)
सफर सूए-मंज़िल चला रफ़्ता-रफ़्ता
हर इक मरहला तय हुआ रफ़्ता-रफ़्ता
छुटी रफ़्ता-रफ़्ता ही पीने की आदत
बना रिंद भी बाख़ुदा रफ़्ता-रफ़्ता
ज़माने में क्या क्या न सरगोशियाँ थीं
मगर राज़ उनका खुला रफ़्ता-रफ़्ता
हटी गर्द आईन-ए-दिल से जब भी
तो सब सामने आ गया रफ़्ता-रफ़्ता
ख़ुशी हो कि ग़म आते जाते हैं ‘देवी’
चला है यही सिलसिला रफ़्ता-रफ़्ता