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सफर सूए-मंज़िल चला रफ्ता-रफ्ता / देवी नांगरानी

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सफर सूए-मंज़िल चला रफ़्ता-रफ़्ता
हर इक मरहला तय हुआ रफ़्ता-रफ़्ता

छुटी रफ़्ता-रफ़्ता ही पीने की आदत
बना रिंद भी बाख़ुदा रफ़्ता-रफ़्ता

ज़माने में क्या क्या न सरगोशियाँ थीं
मगर राज़ उनका खुला रफ़्ता-रफ़्ता

हटी गर्द आईन-ए-दिल से जब भी
तो सब सामने आ गया रफ़्ता-रफ़्ता

ख़ुशी हो कि ग़म आते जाते हैं ‘देवी’
चला है यही सिलसिला रफ़्ता-रफ़्ता