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कोई भी सूरत नहीं उनको / देवी नांगरानी

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कोई भी सूरत नहीं उनको भुलाने के लिए
दिल में बस जाते है चेहरे याद आने के लिए

अश्क आँखों से छलक कर, कर गये सब कुछ बयां
क्या करे कोशिश भी कोई, ग़म छुपाने के लिए

ठूँठ है चारों तरफ मिलते नहीं तिनके कहीं
हर परिन्दा है परेशां घर बनाने के लिए

मुस्कराकर यूँ न इतराओ बहारों में गुलो
आने वाली है खिज़ां खिल्ली उड़ाने के लिए

जोशे उलफ़त में ये परवाना समझ पाता नहीं
शम्अ जलती है फ़क़त उसको जलाने के लिए

दिल शिक्सता धड़कनों में चाल है बहकी हुई
जिस्म का साबित मकां है बस दिखाने के लिये

हाए वो कातिल-अदा जो चुभ गई है आँख में
होंठ है बेचैन देवी मुस्कराने के लिए