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बिछड़े हैं उन्हें ढूंढें कैसे / देवी नांगरानी
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बिछड़े हैं उन्हें ढूँढें कैसे
पहचान ही जिनकी खो बैठे
ख़ामोश मुहब्बत के पंछी
बोलें भी तो वो बोलें कैसे
क्या नींद ख़रीदी जाती है
क्या भूख दिलाती है पैसे
रोटी की तलब हो दे रोटी
हो प्यास अगर तो पानी दे
ग़ुरबत है शराफ़त का ज़ेवर
वो आज कलंक हुआ कैसे
बारिश में मचलती है बिजली
अल्हड़ आशा नाचे जैसे
‘देवी’ इक बोझ हूँ मैं ख़ुद पर
कोई और उठाये भी कैसे