भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दहशत फैली सड़कों पर / देवी नांगरानी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:51, 10 अप्रैल 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दहशत फैली सड़कों पर
सैर को निकला है क्या डर

ग़फलत का ख़मयाजा है
तलवारों के नीचे सर

आँखों में कुछ ख़्वाब तो हों
सहमी-सहमी शामो-सहर

अब ख़तरों का खौफ किसे
जल कर ख़ाक हुआ जब घर

वहमो-ग़ुमाँ के मारे सब
मेरा भरोसा है सच पर

दीवारें सब जानें है
क़ातिल को जिसकी न ख़बर

‘देवी’ थे कल ख़ुश, पर आज
गुमसुम हैं दीवारो-दर.