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दहशत फैली सड़कों पर / देवी नांगरानी
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दहशत फैली सड़कों पर
सैर को निकला है क्या डर
ग़फलत का ख़मयाजा है
तलवारों के नीचे सर
आँखों में कुछ ख़्वाब तो हों
सहमी-सहमी शामो-सहर
अब ख़तरों का खौफ किसे
जल कर ख़ाक हुआ जब घर
वहमो-ग़ुमाँ के मारे सब
मेरा भरोसा है सच पर
दीवारें सब जानें है
क़ातिल को जिसकी न ख़बर
‘देवी’ थे कल ख़ुश, पर आज
गुमसुम हैं दीवारो-दर.