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मैं जाऊँ, तो किधर जाऊँ / तारा सिंह
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मैं जाऊँ, तो किधर जाऊँ
इधर जाऊँ या उधर जाऊँ
हर तरफ़ हैं काँटे बिछे हुये
जाऊँ तो किस डगर जाऊँ
दोस्त और दुश्मन, दोनों हैं
मुद्दई, मैं किसके घर जाऊँ
जख्मी पाँव चल नहीं पाते
कहो तो यहाँ ठहर जाऊँ
जो काम आज तलक न कर
सका, उसे आज कर जाऊँ