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जलाया था मैंने दिया किसलिए / शहजाद अहमद
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जलाया था मैंने दिया किसलिए
बिफ़रने लगी है हवा किसलिए
अगर जानते हो कि तुम कौन हो
उठाते हो फिर आइना किसलिए
जो लिखा हुआ है वो होना तो है
उठाते हो दस्ते दुआ किसलिए
इसी काफिले का मुसाफिर हूँ मैं
मेरा रास्ता है जुदा किसलिए
बहुत मुख्तलिफ़ थी मेरी आरज़ू
मुझे ये ज़माना मिला किसलिए
भरी अंजुमन में अकेला हूँ मैं
मगर ये नहीं जानता किसलिए
मैं ‘शहजाद’ हर्फे ग़लत हूँ तो फिर
मुझे उसने रहने दिया किसलिए