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पिता / गुरप्रीत

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अपने आप को बेच
शाम को वापिस घर आता
पिता
होता सालम- साबुत
हम सभी के बीच बैठा
शहर की कितनी ही इमारतों में
ईंट ईंट हो कर, चिने जाने के बावजूद
अजीब है
पिता के स्वभाव का दरिया
कई बार उछल जाता है
छोटे से कंकर से भी
और कई बार बहता रहता है
शांत अडोल
तूफानी मौसम में भी
हमारे लिए बहुत कुछ होता है
पिता की जेब में
हरी पत्तियों जैसा
सासों की तरह
घर आज-कल
और भी बहुत कुछ लगता है
पिता को
पिता तो पिता है
कोई अदाकार नहीं
हमारे सामने जाहिर हो ही जाती है
यह बात
कि बाज़ार में
घटती जा रही है
उनकी कीमत
पिता को चिंता
माँ के सपनों की
हमारी चाहतों की
और हमें चिंता है
पिता की
दिन ब दिन कम होती
कीमत की...