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तब, अब, फिर / विपिन चौधरी

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मेरा सामना प्रेम से हुआ
उजला-सफेद-मृदुल प्रेम
मैंने उसकी ओर घड़ी भर को देखा
वह शरमा दिया
ओह!
मैंने उसे आवाज दी
तब तक वह घुमावदार मोड़ मुड़ चुका था
मैंने उसे छूना चाहा,
वह हवा हो लहलहाने लगा
उसकी उजास
अपने भीतर समेटनी चाही
वह शिला होता दिखा
अब
मैं अपनी ही भाषा में गुम,
प्रेम अपने ही जादू में लोप