भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
टीस / विपिन चौधरी
Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:30, 22 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विपिन चौधरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCa...' के साथ नया पन्ना बनाया)
मामला टीस का ना हो
तो बेहतर
पर कम या ज्यादा
मामला टीस का ही है
उखडती है टीस
तो दर्द देती है
दबी रहती है
तो कहीं ज्यादा दुख देती है
तमाम खुशगवारियाँ कहीं पीछे रह
जाती हैं
सदा से बियाबान धरती का क्या क्हना
तारों भरा आकाश
भी इसके रहते सूना लगने लगता है
ना चाँद से काम निकलता है
ना तारें ही काम आते हैं
कभी कम
कभी ज्यादा
टीस हाज़िर है भीतर हमेशा।