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खनके चिड़ियों के कंगन / भगवत दुबे
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आँख ऊषा ने खोली
खनके चिड़ियों के कंगन
किरणें रहीं टटोल
गेह के कोने-कोने को
रातों के प्रहरी उलूक
जाते हैं सोने को
आंगन में आगया, महकता
सुरभित वृंदावन
करती हवा ठिठोली
कलियों ने घूँघट खोले
सगुनौती पढ़ रहा
मुँडेरों पर कागा बोले
बड़े-बड़े हो गये
खुशी से, फूलों के लोचन
छन्द किसानों ने लिख डाले
हल से धरती पर
स्वप्न ऊगने लगे सुनहरे
बंजर पड़ती पर
धरती पर उतार लाये
ज्यों कृषक गंध मादन