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बिछड़ना / शैलजा पाठक

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बिछड़ने से
सिर्फ तुम दूर नही हो जाते

कुछ रास्ते अपने आप को
भूल जाते हैं
तालाब का गुलाबी कमल
मुझसे आँखें फेर लेता है

हवा में बह रही
तुम्हारी आवाज
टकरा टकरा जाती है
मुझसे

कम्बखत बेखुदी तो देखो
ये जानते हुए भी की नही हो तुम
बढाती हूँ अपना हाथ तुम्हारी तरफ
आज कहाँ चोट लगा लिया?
ये भी सुनती हूँ

मंदिर के मोड़ पर
तुम मुझे फूल लिए दिखते हो
सावन में एक हरा दुपट्टा तुमने
मुझे ओढाया था

मेरे रास्ते अब मंदिर नही पड़ता
वो रास्ता भी छीन गया है अब
समन्दर की कोई लहर नही छू पाती मुझे
पूरा चाँद भी अधूरा दिखता है मुझे
होली का अबीर फीका कर गए हो

तुम्हारे बिछड़ने से मैं दूर रहीं हूँ
इन खुबसूरत लम्हों से
मैं बिछड़ गई अपने आप से

मेरे अंगूठे को जोर से दबाने की टिस
देखो हुई अभी अभी

बिछड़ना बस एक भ्रम होता है क्या?