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मत करना मनमानी / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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हाथी दादा थे जंगल में,सबसे वृद्ध सयाने,
डरे नहीं वे कभी किसी से, किए काम मनमाने।
आया मन तो सूंड़ बढ़ाकर,ऊंचा पेड़ गिराया,
जिस पर चढ़ा हुआ था बंदर, नीचे गिरकर आया।
कभी सूंड़ में पानी भरकर, दर्जी पर फुर्राते,
मुझको दे दो शर्ट पजामे, हुक्म रोज फरमाते।
तब पशुओं ने शेर शाह से, कर दी लिखित शिकायत,
शेर शाह ने आनन-फानन, बुलवाई पंचायत।
पंचायत ने किया फैसला, करता जो मनमानी,
बंद करेंगे पांच साल तक, उसका हुक्का पानी।
माफी माँगी तब हाथी ने, लिखकर किया निवेदन,
आगे अब ना होगी गलती, करता हूँ ऐसा प्रण।
तुमसे भी कहते हैं बच्चों, मत करना मनमानी,
बंद तुम्हारा कर देंगे हम, वरना हुक्का पानी।