Last modified on 6 मई 2014, at 15:47

मातृवंदना / कालीकान्त झा ‘बूच’

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:47, 6 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कालीकान्त झा ‘बूच’ |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जननि हय, जीवन हमर कठोर
अध्यावधि सुख-शांति न भेटल,
पयलहुँ विपति अघोर
जानी नहि वात्सल्य-पाश
अज्ञात सिनेहक कोर
लागल नहि ऑचर क छाँह
नहि सटल गाल पर ठोर
आनन पर अविराम रूदन
मन पर चिंता घनघोर
कतऽ हमर विश्राम-राति हे,
कतऽ विनोदी भोर?
अपने शिव शव वनल शिवे,
तोरो छह लगल बकोर
तोहर दया अकाशी चंदा,
हम धरती क चकोर