भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कहिया धरि उदासी / कालीकान्त झा ‘बूच’
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:50, 6 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कालीकान्त झा ‘बूच’ |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पन्ना बनाया)
हमर प्रिय परदेश वासी
कोना ई मधुमास काटब
निरस काटब पकड़ि पासी
साँझ मादकता झमारल
प्रात अछि मकरंद माँतल
कहू कहिया धरि रहब हम
संयमक सीड़क सँ जाँतल
की विलम्ब कदम्ब शाखा
सँ मरब हम लटकि फाँसी
रभस बहसलि वाटिका अछि
भ्रमर बहसल रंगसँ सखि
हम तँ दहसलि अपन मोनक
उठल सुप्ततरंग सँ सखि
जे छलि सुअंक स्वामिनि
से भेलीह अनंग दासी
नव वसंग उमंग आएल
पूरल सबहक कामना सखि
शूलसँ घेरल मुकुलवत
हमर तँ अराधना सखि
चलि रहत चलिते रहल
नहि जानि “कहिया धरि उदासी।”