भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ढल गया आफ़ताब ऐ साक़ी / सुदर्शन फ़ाकिर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:19, 7 मई 2014 का अवतरण
ढल गया आफ़ताब ऐ साक़ी ला पिला दे शराब ऐ साक़ी
या सुराही लगा मेरे मुँह से या उलट दे नक़ाब ऐ साक़ी
मैकदा छोड़ कर कहाँ जाऊँ है ज़माना ख़राब ऐ साक़ी
जाम भर दे गुनाहगारों के ये भी है इक सवाब ऐ साक़ी
आज पीने दे और पीने दे कल करेंगे हिसाब ऐ साक़ी </poem>