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वर्जना / सावित्री नौटियाल काला

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सदा वर्जनाएँ झेली हैं जीवन में|
बोलने की, चलने की, सोने की जगने की|
देखने की, सुनने की, समझने व न समझने की|
सुबह से शाम तक वर्जनाएँ ही वर्जनाएँ||
बाहर निकली तो पड़ोसियों की|
स्कूल गई तो संग सहेलियों की|
कक्षा में बैठी तो शिक्षिकाओं की|
कैन्टीन में सहयोगी छात्र-छात्राओं की||
सबकी नज़रों में वर्जनाएँ ही वर्जनाएँ|
धरी रह गई मेरी सारी कामनाएँ|
छिद्र-छिद्र होती रही मन की भावनायेँ|
सहती रही जीवन भर सबकी वर्जनाएँ||
थोड़ी बड़ी हुई तो झेलनी पड़ी नज़रों की वर्जनाएँ||
विवाह होने पर पति द्वारा दी गई वर्जनाएँ|
सास, ससुर के तानों की वर्जनाएँ|
ननद, देवरों, जेठ, जेठानियों द्वारा भी दी गई वर्जनाएँ||
शिक्षिका बनी सह कर्मियों की झेली वर्जनाएँ|
प्राचार्य द्वारा भी दी गई वर्जनाएँ|
बच्चों के अटपटे उत्तर न दे पाने की वर्जनाएँ|
छात्र-छात्राओं की उत्तर पुस्तिका न जांचने पर,
अभिभावकों की झेली वर्जनाएँ||
कैसा बिता जीवन वर्जनाओं के घेरे में|
अब अवसान के समय बहू बेटों की वर्जनाएँ|
नाती पोते पोतियों की वर्जनाएँ|
बस यूँ ही बीत गया, बीत रहा है, बीतेगा|
जीवन वर्जनाओं के घेरे में||