भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राजनीति / सावित्री नौटियाल काला

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:53, 9 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सावित्री नौटियाल काला |अनुवादक= |...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज राजनीति कुछ मवालियों के हाथ है
जिनका प्रशासन में पूरा साथ है
यहां होने वाले सभी घोटालों में
अपने देश के नेताओं का पूरा हाथ है|

आज भारत की नैया डूब रही है
धैर्य का बांध भी छूट रहा है
पर वे तो एक दूसरे को ही दूर करने में लगे है
क्योंकि शासन तंत्र की पूरी छूट पा रहे है

करों का तो केवल तमाशा है
भारत की नहीं कोई भाषा है
इसकी प्रगति की भी नहीं आशा है
कैसी छाई घनघोर निराशा है

हर नागरिक ने अपने को ही साधा
अपनी भावनाओं को अपने से ही बांधा
पर प्रशासन ने उनको भी किया आधा
जब उनको टैक्स के पंजे से बांधा

हम ऐसे में क्या कर पायेंगे
कैसे गृहस्थी की नैया पार लगायेंगे
न जाने क्या-क्या खोकर कुछ पायेंगे
क्या ऐसा जीवन हम जी पायेंगे

नेताओं का यहां सरे आम गर्म है बाजार
शासन भी करता उनके द्वारा व्यापार
बेचारी जनता ही पिसती है बार-बार
क्योंकि घोटालों का ही है यहां कारोबार

अब तो डीज़ल व पैट्रोल के बढ़ गए है दाम
करेंगे सैलानी अब घर में ही आराम
बाहर जाने का नहीं रहेगा कोई काम
वे बने रहेंगे अब घर के ही मेहमान

सरकार की कैसी यह नीति है
लोगों में बढ़ गई अब नीति है
अरे यह तो सबकी आपबीती है
सुनते है सुनाते है यहीं तो नीति है

आवो ऐसा संसार बनाएँ
राजनीति में न भरमायें
शासन तंत्र में सुधार लायें
अपने प्रदेश को स्वच्छ राज्य बनाएँ|