चाहत की बरसात / सावित्री नौटियाल काला
का से कहूं मैं अपने दिल की बात|
न जाने कब पूरी होगी मेरे दिल की सौगात|
मैं भी कर पाउंगी प्रिय से संवाद|
क्या कभी हो पायेगी दिल से दिल की बात||
तुम कब समझोगे मेरे दिल की बात|
अभी तो नही दिख रहे हैं कोई आसार|
कभी तो फुरसत से मिलो हमें इक बार|
हमारा दिल पुकारता है तुम्हे बार-बार||
अब तो आ जाओ मेरे मन मीत|
मत उलझो दुनिया की भवभीत|
अनमोल समय बीता जा रहा है|
पर हमारा मिलन नहीं हो पा रहा है|
हम कब चलेंगे प्यार की राहों में साथ-साथ|
पकड़ कर बिना डर भय के एक दुसरे का हाथ|
हम कहीं दूर इक आशना बनाएँगे|
क्या तुम वहां संग साथ रहने आ पाओगे||
जीवन की इस सांध्य बेला में|
डोल रहे हैं हम अकेले अकेले में|
अब तो साथ निभा जाओ|
बस एक बार हमारे पास आ ही जाओ||
मन की कुण्ठा अब करो तुम दूर|
जीवन नहीं जी पाये तुम भी भरपूर|
हमने जीवन भर अपना-अपना फर्ज निभाया है|
कोई नहीं बन पाया हमारा साया है||