भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चाहत की बरसात / सावित्री नौटियाल काला

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:46, 9 मई 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

का से कहूं मैं अपने दिल की बात।
न जाने कब पूरी होगी मेरे दिल की सौगात।
मैं भी कर पाउंगी प्रिय से संवाद।
क्या कभी हो पायेगी दिल से दिल की बात।।

तुम कब समझोगे मेरे दिल की बात।
अभी तो नही दिख रहे हैं कोई आसार।
कभी तो फुरसत से मिलो हमें इक बार।
हमारा दिल पुकारता है तुम्हे बार-बार।।

अब तो आ जाओ मेरे मन मीत।
मत उलझो दुनिया की भवभीत।
अनमोल समय बीता जा रहा है।
पर हमारा मिलन नहीं हो पा रहा है।

हम कब चलेंगे प्यार की राहों में साथ-साथ।
पकड़ कर बिना डर भय के एक दुसरे का हाथ।
हम कहीं दूर इक आशना बनाएँगे।
क्या तुम वहां संग साथ रहने आ पाओगे।।

जीवन की इस सांध्य बेला में।
डोल रहे हैं हम अकेले अकेले में।
अब तो साथ निभा जाओ।
बस एक बार हमारे पास आ ही जाओ।।

मन की कुण्ठा अब करो तुम दूर।
जीवन नहीं जी पाये तुम भी भरपूर।
हमने जीवन भर अपना-अपना फर्ज निभाया है।
कोई नहीं बन पाया हमारा साया है।।