गीत है यह गिला नहीं / शमशेर बहादुर सिंह
'आये भी वो गये भी वो' 'गीत है यह, गिला नहीं।
हमने ये कब कहा भला, हमसे कोई मिला नहीं।
आपके एक खयाल में मिलते रहे हम आपसे
ये भी है एक सिलसिला गो कोई सिलसिला नहीं।
गर्मे-सफर हैं आप, तो हम भी हैं भीड़ में कहीं।
अपना भी काफिला है कुछ आप ही का काफिला नहीं।
दर्द को पूछते थे वो, मेरी हँसी थमी नहीं,
दिल को टटोलते थे वो, मेरा जिगर हिला नहीं।
आयी बहार हुस्न का खाबे-गराँ लिये हुए:
मेरे चमन को क्या हुआ, जो कोई गुल खिला नहीं।
उसने किये बहत जतन, हार के कह उठी नजर:
सीना-ए-चाक का रफू हमसे कभी सिला नहीं:
इश्क का शायर है खाक, हुस्न का जिक्र है मजाक
दर्द में गर चमक नहीं, रूह में गर जिला नहीं।
कौन उठाये उसके नाज, दिल तो उसी के पास है;
शम्स' मजे में हैं कि हम इश्क में मुब्तिला नहीं।