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ईसुरी की फाग-15 / बुन्देली
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♦ रचनाकार: अज्ञात
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जब से रजऊ ने पैरी अंगिया, मोय करो बैरगिया
फिरतीं रातीं गली-खोरन में, तनक उगर गई जंगिया
घूमत फिरत नसा के मारे, मानो पी लई भंगिया
ईसुर भये बाग के भौंरा, रजऊ भईं फुलबगिया ।