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लाल रंग की इबारत / वाज़दा ख़ान

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हल्के हल्के पानी वाले बादलों के बीच
पीली लम्बी पट्टी खिंची थी
मेरे हृदय से
तुम्हारे हृदय तक
कल बिना सलाखों वाले जंगले पर
लेटकर
पढ़ रही थी उसे लाल रंग की इबारत
पीली पट्टी पर लाल रंग की इबारत
तुमने भी कभी
उसे पढ़ा होगा
असल में उसे तुमने ही पढ़ा होगा
मैंने तो तुम्हें हथेलियों में बांध लिया था
थोड़ी रोशनी, थोड़ा अंधेरा
यही सिलसिला चला आ रहा था
चांद के घटने बढ़ने के साथ
तुमने अपनी
हथेलियों में बांधा मेरी हथेलियों को
और जंगले पर लटकी शाख पर
नज्म लिखी.