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मुट्ठी भर उजियाळो / संजय आचार्य वरुण

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निजरां सूं कीं कैवणो
मूंडै सूं कीं
कैवण सूं बत्तो हुवै
असरदार
म्हैं सीखग्यो।
म्हैं जाणग्यो
कै रात रै अंधारै मांय
न्हायोड़ी धरती
जे चंदरमा सूं मांग लेवै
मुट्ठी भर उजियाळो
तो चंदरमा
मुंडो फेर’र खिसक जावै
अर घणी बार
वो ई चंदरमा
दिन थकै आय धमकै
धरती री छाती माथै
अणमावतो
उजियाळो लेय’र।