भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरे शहर के पाटे- 3 / राजेन्द्र जोशी
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:45, 14 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेन्द्र जोशी |संग्रह=सब के साथ ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
मेरे शहर के पाटे
विश्वास और श्रद्धा से भरपूर
भरे रहते हैं
लोग बैठे रहते हैं
चर्चा में मशगूल
तुम्हारा इंतजार करेगें
चले आना
मेरे शहर में
शहर के पाटे
मजबूत बहुत हैं
भार सहते हैं
फिर भी मुस्कुराते रहते हैं
इंतजार करते ही रहते हैं
ये पाटे तुमसे बात करेगें
अपनी परम्पराओं से लबरेज
माथे पर तिलक लगाकर
तुम्हारा स्वागत करेंगे