सास नहीं, भारत माता हैं / गोपालप्रसाद व्यास
हिन्दी के कवियों को जैसे 
गीत-गवास लगा करती है
या नेता टाइप लाला को 
नाम-छपास लगा करती है। 
मथुरा के पंडों को लगती 
है खवास औरों के घर पर 
उसी तरह श्रोतागण पाकर 
मुझे कहास लगा करती है।
पढ़ते वक्त मुझे बचपन में 
अक्सर प्यास लगा करती थी,
और गणित का घंटा आते 
शंका खास लगा करती थी।
बड़ा हुआ तो मुझे इश्क के 
दौरे पड़ने लगे भंयकर,
हर लड़की की अम्मा मुझको 
अपनी सास लगा करती थी। 
कसम आपकी सच कहता हूं 
मुझको सास बहुत प्यारी है,
जिसने मेरी पत्नी जाई 
उस माता की बलिहारी है!
जरा सोचिए, अगर विधाता 
जग में सास नहीं उपजाते, 
तो हम जैसे पामर प्राणी 
बिना विवाह ही रह जाते।
 
कहो कहां से मुन्नी आती?
कहो कहां से मुन्ना आता?
इस भारत की जनसंख्या में
अपना योगदान रह जाता।
आधा दर्जन बच्चे कच्चे
अगर न अपना वंश बढ़ाते,
अपना क्या है, नेहरू चाचा
बिना भतीजों के रह जाते।
एक-एक भारतवासी के 
पीछे दस-दस भूत न होते,
तो अपने गुलजारी नंदा
भार योजनाओं का ढोते।
क्या फिर बांध बनाए जाते?
क्या फिर अन्न उगाए जाते?
कर्जे-पर-कर्जे ले-लेकर 
क्या मेहमान बुलाए जाते?
यह सब हुआ सास के कारण 
बीज-रूप है वही भवानी, 
सेओ इनको नेता लोगो! 
अगर सफलता तुमको पानी। 
श्वसुर-प्रिया, सब सुखदाता हैं
भव-भयहारिणि जगदाता हैं
सुजलां सुफलां विख्याता है
सास नहीं, भारत माता है।
	
	