भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दानी नए भए माँबन दान सुनै / रसखान
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:02, 16 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रसखान |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatPad}} <poem> द...' के साथ नया पन्ना बनाया)
दानी नए भए माँबन दान सुनै गुपै कंस तो बांधे नगैहो
रोकत हीं बन में रसखानि पसारत हाथ महा दुख पैहो।
टूटें धरा बछरदिक गोधन जोधन हे सु सबै पुनि दहो।
जेहै जो भूषण काहू तिया कौ तो मोल छला के लाला न विकेहो।