भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नो लख गाय सुनी हम नंद के / रसखान

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:05, 16 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रसखान |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatPad}} <poem> न...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नो लख गाय सुनी हम नंद के,
तापर दूध दही न अघाने।
माँगत भीख फिरौ बन ही बन,
झूठि ही बातन के मन मान।
और की नारिज के मुख जोवत,
लाज गहो कछू होइ सयाने।
जाहु भले जु भले घर जाहु,
चले बस जाहु वृंदावन जानो।