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हसद से दिल अगर / ग़ालिब
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हसद से दिल अगर अफ़सुरदा है गरम-ए-तमाशा हो
कि चशम-ए तनग शायद कसरत-ए-नज़ज़ारा से वा हो
ब क़दर-ए-हसरत-ए-दिल चाहिये ज़ौक़-ए-मआसी भी
भरूं यक गोशह-ए दामन गर आब-ए हफ़त दरया हो
अगर वह सरव-क़द-गरम-ए ख़िराम-ए नाज़ आ जावे
कफ़-ए हर ख़ाक-ए-गुलशन शकल-ए-क़ुमरी नालह-फ़रसा हो