भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

श्री विद्या चालीसा / चालीसा

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:24, 19 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह=चालीसा }} <poem> श्री ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

श्री विद्या के यन्त्र में छिपे हुये सब ग्यान,
श्री विद्या के भक्त को, मिलें सभी वरदान।
[१]
श्री विद्या! आत्मा, ललिता तू,
गौरी, शान्ता, श्री माता तू।
[२]
महालक्षमी, सरस्वती तू।
दुर्गा, त्रिपुरा, गायत्री तू।
[३]
पूर्ण स्रिष्टि की है तू काया,
लेकिन तुझको कहते माया।
[४]
सत्य, चित्त, आनन्दमयी तू,
पूर्ण, अनन्त, प्रकाशमयी तू।
[५]
भजते तुझको मन्त्रों द्वारा,
तुझे खोजते यन्त्रों द्वारा।
[६]
तन्त्रों से भी तुझको जाना,
शक्ति रूप में है पहचाना।
[७]
आदि, अनश्वर, परा शक्ति तू,
तीन गुणों की मूल शक्ति तू।
[८]
नवीन होता रूप जहां पर,
तेरी इच्छा शक्ति वहां पर।
[९]
ब्रह्माण्ड में संतुलन सारा,
तेरी ग्यान शक्ति के द्वारा।
[१०]
गतिमय भौतिक रूप जगत के,
प्रमाण तेरी क्रिया शक्ति के।
[११]
वाक-शक्ति प्राणी ने पाई,
तेरे नाद-बिन्दु से आई।
[१२]
परा वाक तू, पश्यन्ती तू,
तू मध्यमा, वैखरी भी तू।
[१३]
विश्व चेतना तुझसे आई,
सारे ब्रह्माण्ड में समाई।
[१४]
तेरा अंश प्राण को पाकर,
बनता जीव जगत में आकर।
[१५]
जाग्रत, सुप्त, स्वप्न में तू है,
तुरिया में, समाधि में तू है।
[१६]
तेरा ध्यान मुनी करते हैं,
तेरा गान कवी करते हैं।
[१७]
रहती सबके शरीर में तू,
इन्द्रि, बुद्धि, चित, आत्मन में तू।
[१८]
जो भी कर्म जगत में होते,
तुझसे ही संचालित होते।
[१९]
तू अनेक रूपों में आती,
संसारी चक्र को चलाती।
[२०]
सूर्य, चन्द्र, तारे जो आते,
तेरी ही छवि को दिखलाते।
[२१]
बनकर वायु, अग्नि, जल, धरती,
भौतिक रूप प्रदर्शित करती।
[२२]
देवी! तेरा रहस्य क्या है,
मानव इसको खोज रहा है।
[२३]
तू ही जड़ है भौतिकता की,
तू जननी आध्यात्मिकता की।
[२४]
भौतिकता का ग्यान अधूरा,
आत्म ग्यान से होता पूरा।
[२५]
सुन्दर तेरा यन्त्र बनाया,
उसमें गहरा ग्यान समाया।
[२६]
शक्ति, चेतना दोनों उसमें,
विद्याओं का निवास उसमें।
[२७]
भाषा, लिपि का विकास सारा,
होता है तेरे ही द्वारा।
[२८]
लगा इन्द्रि-सुख में जीवन को,
लोग भूल जाते हैं तुझको।
[२९]
विषय भोग में जो जाते हैं,
केवल कुछ पल सुख पाते हैं।
[३०]
काम, क्रोध, भय, मोह, लोभ सब,
होते दूर तुझे पाते जब।
[३१]
जिसने तुझको है पहचाना,
जीवन का रहस्य भी जाना।
[३२]
जो तुझको न समझ पाते हैं,
अन्त समय वे पछताते हैं।
[३३]
सबको अपना ग्यान करा दे,
सबका जीवन सुखी बना दे,
[३४]
अन्धकर को दूर भगा दे,
परम ग्यान की ज्योति जगा दे।
[३५]
प्रेम, अहिंसा, शान्ति बढ़ा दे,
मानवता का पाठ पढ़ा दे।
[३६]
जग से हाहाकार मिटा दे।
अपना चमत्कार दिखला दे।
[३७]
जिसका तूने साथ दिया है,
उसने सब कुछ प्राप्त किया है।
[३८]
जिसे शरण में तू लेती है,
उसको सारे सुख देती है।
[३९]
जिसने तुझमें लगन लगाई,
तूने उसकी शक्ति बढ़ाई।
[४०]
हम तेरी महिमा को गाते,
गाकर सभी सुखी हो जाते।

यह चालीसा जो पढ़े, हो जाये गुणवान,
दुख सारे उसके मिटें, पाये शक्ति महान।