भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सबसे अहम बात यह है-1 / शशिप्रकाश
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:18, 20 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शशिप्रकाश |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGeet...' के साथ नया पन्ना बनाया)
अपनी जड़ों को कोसता नहीं
उखड़ा हुआ चिनार का दरख्त ।
सरू नहीं गाते शोकगीत ।
अपने बलशाली होने का
दम नहीं भरता बलूत ।
घर बैठने के बाद ही
क्रान्तिकारी लिखते हैं
आत्मकथाएँ
और आत्मा की पराजय के बाद
वे बन जाते हैं
राजनीतिक सलाहकार ।