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रे मन राम सों करि हेत / सूरदास

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रे मन राम सों करि हेत।
हरिभजन की बारि करिलै उबरै तेरो खेत॥
मन सुवा तन पींजरा तिहि मांझ राखौ चेत।
काल फिरत बिलार तनु धरि अब धरी तिहिं लेत॥
सकल विषय-विकार तजि तू उतरि सागर-सेत।
सूर भजु गोविन्द-गुन तू गुर बताये देत॥