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पतिब्रता पति मिली है लग / दरिया साहब
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पतिब्रता पति मिली है लग, जहँ गगन-मँडल में परमभाग॥
जहँ जल बिन कँवला बहु अनंत, जहँ बपु बिनु भौंरा गुंजरंत।
अनहद बानी जहँ अगम खेल, जहँ दीपक जरै बिन बाती तेल॥
जहँ अनहद-सबद है कहत घोर, बिनु मुख बोले चात्रिक मोर।
जहँ बिन रसना गुन बदति नारि, बिन पग पातर निरतकारि॥
जह~म जल बिन सरवर भरा पूर, जहँ अनंत जोत बिन चंद-सूर।
बारह मास जहँ रितु बसंत, धरैं ध्यान जहँ अनँत संत॥
त्रिकुटी सुखमन जहँ चुवत छीर, बिन बादल बरसौ मुक्ति नीर।
अमरत-धारा जहँ चलै सीर, कोई पीवै बिरला संत धीर॥
ररंकार धुन अरूप एक, सुरत गही उनहीकी टेक।
जन 'दरिया' बैराट चूर, जहँ बिरला पहुँचे संत सूर॥