भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
साहब मेरे राम हैं / दरिया साहब
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:17, 23 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दरिया साहब |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatPad...' के साथ नया पन्ना बनाया)
साहब मेरे राम हैं, मैं उनकी दासी;
जो बान्या सो बन रह्या, आज्ञा अबिनासी।
अरध उरध षट कँवल बिच, करतार छिपाया;
सतगुरु मिल किरपा करी, कोइ बिरले पाया।
तीन लोक, चौदह भुवन, केवल वह भरपूरा;
हाजिराँसे हाजिर सदा, वह दूराँसे दूरा।
पाप-पुन्य दोउ रूप हैं, उनहींकी माया;
साधनके बरतन सदा, भरमै भरमाया।
जन 'दरिया' इक राम भज, भजबेकी बारा;
जिन यह भार उठाइया, उनके सिर भारा।