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दारू पीकै गाळ बकै वो, कुछ ना उसतै कह / सत्यवीर नाहड़िया

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दारू पीकै गाळ बकै वो, कुछ ना उसतै कह
सुख तै जीणा चाहवै सै तो भोंदू बणकै रह
   
सीध-साधा चाल्या कर तू, मत चक्कर म्हं पडिय़े
ताक पै धरदे स्याणापण तू, अपणी बुद्धि हडिय़े
ना मानै तो अजमा ले अर पग-पग सबतै लडिय़े
टेम जा लिया आज कहण का, मत झंझट म्हं बडिय़े
किसै तै तू मत ना अडिय़े, जोर-जुल्म ले सह
 
लोक सुधारण का तू मत ले, कोई ठेक्का भाई
मत बण राममोहन राय तू, मिलज्यां घणी बुराई
नुगरे माणस आंख बदलज्यां, दुनिया कहती आई
एक चुप के सौ सुख हों सैं, चुप म्हं घणी भलाई
सुणिये काकी-सुणिये ताई, तू बहू कहे म्हं बह
 
काम कराल्ये ले-दे कै तू, मत कानून पढ़ावै
घणा नियम पै मत चाल्लै तू, ना तै फेर पछतावै
मेज तळै या ऊपर कै, कोई तपै भेंट चढ़ावै
हाथ जोड़ चुचकार ले उसनै, लिछमी मत ठुकरावै
धरी-धरायी रह जावै, मत लाम्बी-चौड़ी कह
 
क्यूं बिरचै अंगरेज घणा तू, कह थोट की भाषा
ना समझै चौळे की भाषा, ना हे कोट की भाषा
आज की दुनियां समझै सै सुण, के तो सोट की भाषा
या फेर समझै आच्छी तरियां, लीले नोट की भाषा
कह नाहडिय़ा ओट की भाषा नहीं रह्या इब भय