तू समझण जोगी स्याणी सै / रामफल सिंह 'जख्मी'
तू समझण जोगी स्याणी सै, सब कानूनां का बेरा सै
माणस मरवाण का परमट, कुण सा पंचाती लेर्या सै
जोड़ी का वर टोहवण, खुद सावित्री गई के ना
लीलो-चमन सुण्या होगी, थी उन की जोड़ी सही के ना
वासदेव गेल नार देवकी, बणा कै जोड़ी रही के ना
देश जांदा परदेश जाईयो, न्यु जोड़ी खातर कही के ना
तू इस फंद म्हं फही के ना, ना पसंद बांधर्या सेहरा सै
मैं कती समर्थन ना करती, या बिना मेल की शादी है
इस शादी के हौण म्हां, मेरी जिंदगी की बरबादी है
बोलण तक का टैम मिल्या ना, या किसी आजादी है
बीर निमाणी मर्द चौधरी, चाहे किसे नशे का आदी है
मर्द कितना अलबादी है, क्यूं म्हारी जान नै घेरा सै
इसा फरमान सुणाया सै, मनै बिल्कुल खारा लागै सै
आजाद देश म्हं जो होया करै, उस ते न्यारा लागै सै
अनपढ़-माणस कठ्ठे हो रे, मनै एक इशारा लागै सै
बिना पढ़े ना पता कत्ल पै, कुण सी धारा लागै सै
जो कानून तै भागै सै, तै हवालात म्हं डेरा सै
दुनिया का आधा हिस्सा मानै, यो कोए उपकार नहीं
जोड़ी का वर टोहण का भी, महिला को अधिकार नहीं
इज्जत का सिर धरवा भरोटा, कति जाण दें बाहर नहीं
पशुआं खातर कठ्ठे हो ज्यां, इस मुद्दे पै तकरार नहीं
मैं कति मरण ना त्यार नहीं, जा ‘जख्मी’ शान भतेरा सै