भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

काव्‍यालोचना / शिरीष कुमार मौर्य

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:08, 26 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= शिरीष कुमार मौर्य |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक रास्‍ते पर मैं रोज़ आता-जाता रहा
अपनी ज़रूरत के हिसाब से उसे बिगाड़ता-बनाता रहा
अब उस पर श्रम और सौन्‍दर्य खोजने का एक काम लिया है

सार्थक-निरर्थक होने के फेर में नहीं पड़ा कभी
जीवन और कविता में जो कुछ जानना था
ज्‍़यादातर अभिप्रायों से जान लिया है