भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गुरु के वचन अमियरस / सरहपा
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:31, 28 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरहपा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatPad}} <poem> ग...' के साथ नया पन्ना बनाया)
गुरु के वचन अमियरस, धाइ न पीयेउ जेहि।
बहु-शास्त्रार्थ-मरुस्थले, तृषितै मरिबो तेहि।
चित्त अचित्तहु परिहरहु, तिमि रहहू जिमि बाल।
गुरुवचने दृढ़ भक्ति करु, होइ है सहज उलास।