भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

श्री अन्नपूर्णा देवी जी की आरती / आरती

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:28, 30 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKDharmikRachna}} {{KKCatArti}} <poem> बारम्बार प्रणाम मैया बारम्ब...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अष्टक   ♦   आरतियाँ   ♦   चालीसा   ♦   भजन   ♦   प्रार्थनाएँ   ♦   श्लोक

   
बारम्बार प्रणाम मैया बारम्बार प्रणाम
जो नहीं ध्यावे तुम्हें अम्बिके,
कहां उसे विश्राम।

अन्नपूर्णा देवी नाम तिहारो,
लेत होत सब काम॥

प्रलय युगान्तर और जन्मान्तर,
कालान्तर तक नाम।

सुर सुरों की रचना करती,
कहाँ कृष्ण कहं राम॥

चूमहि चरण चतुर चतुरानन,
चारू चक्रधर श्याम।

चन्द्र चूड़ चन्द्रानन चाकर,
शोभा लखहि ललाम॥

देवी देव। दयनीय दशा में,
दया दया तब जाम।

त्राहि-त्राहि शरणागत वत्सल,
शरणरूप तब धाम॥

श्री ह्रीं श्रद्धा भी ऐ विधा,
श्री कलीं कमला काम।

कानित भ्रांतिमयी कांतिशांति,
सयीवर दे तू निष्काम॥