भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रानी कीरति कुँवरि जाई / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:00, 30 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |...' के साथ नया पन्ना बनाया)
रानी कीरति कुंवरि जाई॥
सुंदर सुभग मनोहर मंगल परम सुलच्छनि सब मन भाई।
सबै अलौकिक रूप मधुर गुन अमित प्रेम-सागर लहराई॥
चिदानंद-रस हरि की अह्लादिनि-सक्ति सहज निज रूप छिपाई।
धनि-धनि भाग भानु नृप के जिन के घर यह कन्या बनि आई॥
धनि रावल, धनि-धनि बरसानों, धनि गोपी, जिन गोद खिलाई॥
नंद-जसोदा धन्य, आइ जिन यहाँ सरित सुख-सुधा बहाई॥