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द्वार वृषभानु के आजु / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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द्वार वृषभानु के आजु भ‌ई भीर री।
 उमगि चल्यौ रस-निधि छाँडि निज तीर री॥
 गोप-गोपि बाल-बृद्ध तजि धन-धाम री।
 खिंचे-से आ‌ए सब खोय घर-काम री॥

 दधि-‌अच्छत-दूब-हरद-कुमकुम भरि थारि री।
 आय जुरे अगनित जन सजि-सजि सिंगार री॥
 नाचत सब नारि-नर छाँडि सकल लाज री।
 छिरकत दधि-हरद करत आनँद-धुनि गाज री॥

 गुनीजन गावत सब नाचत दै ताल री।
 आनँद-मद-माते गीत गावत रसाल री॥
 भ‌ई आज सब की मनभा‌ई सुखद बात री।
 नाचि उठे अंग-‌अंग पुलकित भ‌ए गात री॥

 आ‌ए अज, ईस, इंद्र, बरुन अरु कुबेर री।
 लच्छी, सुरसती, सती, सची देवि ढेर री॥
 धरि कै ग्वाल-गोपी-तन करत कीर्ति-गान री।
 किंनर-गंधर्ब बने गोप भरत तान री॥

 जय-जय बृषभानु, जयति भानु-कीर्ति-रानि री।
 सबके हित भ‌ए आजु परम सुख-दानि री॥
 बरसि रह्यौ रस अनूप भूप भानु-द्वार री।
 भ‌ए सब सब के आनंद-‌आगार री॥