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बज रही गाँव रावल में / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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बज रही गाँव रावल में आज मंगल बधा‌ई है।
  कीर्ति-रानि के घर सुघर राधा कुँवारि जा‌ई है॥

 मोद मन में अतुल भरकर,
   जेवरों-जरों से सजकर,
     सोच घर-बार का तजकर,
       गोपियाँ घर से आ‌ई हैं॥बज रही॥

 नाचते, गान सब करते,
   वेणु में सुर मधुर भरते,
     गोप डगमग चरण धरते,
       मोद-मदता जु छा‌ई है॥बज रही॥

 बड़े-छोटे हजारों घट,
   दही-माखन से भर झटपट,
     गोपिका-गोप सब चटपट
       पहुँच हुड़दँग मचा‌ई है॥बज रही॥

 दही-नवनीत-पय लेकर,
   डोलियाँ छोड़ते भर-भर,
     दधिकाँदौ ही नहीं रहकर,
       नदी गो-रस बहा‌ई है॥बज रही॥

 वृद्ध-बालक-तरुण अड़ते,
   सभी गोरस-समर लड़ते,
     कूदते-उछलते-पड़ते,
       लोक-लज्जा गवाँई है॥बज रही॥