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वह धन्य घड़ी है आ‌ई / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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वह धन्य घड़ी है आ‌ई।
  कीरति ने राधा जा‌ई।
   तब सब दिसि बजी बधा‌ई।
    सब के मन मुदिता छा‌ई॥

लछमी बन दा‌ई आर्ईं।
 ग्वालिनि सब मिलि-मिलि धार्ईं।
  परसा-धरसा की मार्ईं।
   बनि-ठनि कै सबै लुगार्ईं॥

सब चलीं हि‌एँ हरषार्ईं।
 सब ही सब के मन भार्ईं।
  कीरति-मंदिर प्रबिसा‌ई।
   जिनि रोकौ, देत दुहा‌ई॥

जब खबर नंद ने पा‌ई।
 जसुमति कौं संग लेवा‌ई।
  लाली-मुख निरखन ताँई।
   पहुँचे बरसाने आ‌ई॥