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धन्य-धन्य द्वापर जुग / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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धन्य-धन्य द्वापर जुग, धनि यह भादौं की आठैं अति पावनि।
प्रगटे पहली में मोहन, या दूजी में राधा मन-भावनि॥
उजियारौ पखवारौ पावन, भाग्य-सील सुभ समय दुपहरी।
प्रगट भर्ईं राधा मन-मोहन, आनँद-घन की आनँद लहरी॥
पुन्य-थली बरसानौ नगरी, भाग्यवान बृषभान सु-नरपति।
कीरति रानी अती सुभागिनी, जिन में प्रगटी स्वयं स्याम-रति॥
भाग्यवान वे स्याम सलोने, जिन पाई यह दुरलभ संपति।
हम सब भाग्यवान नर-नारी भए धन्य, कर तिन की सुस्मृति॥