भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दर्प / निज़ार क़ब्बानी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:42, 31 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निज़ार क़ब्बानी |अनुवादक=सिद्धे...' के साथ नया पन्ना बनाया)
जबसे मैं प्रेम में पड़ा हूँ
मैंने फारस के शाह को
बना लिया है
अपने अनुगामियों में से एक
और मेरे आदेश को शिरोधार्य करता है चीन ।
मैंने समुद्रों को खिसका दिया है
उनकी परम्परागत जगहों से
और अगर मैं चाहूँ
तो रोक सकता हूँ समय का गतिमान रथ ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह