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केशवाचे भेटी लागलें पिसें / गोरा कुंभार
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केशवाचे भेटी लागलें पिसें। विसरलें कैसें देहभान॥ १॥
झाली झडपणी झाली झडपणी। संचरलें मनीं आधीं रूप॥ २॥
न लिंपेची कर्मीं न लिंपेची धर्मी। न लिंपे गुणधर्मी पुण्यपापा॥ ३॥
म्हणे गोरा कुंभार सहज जीवन्मुक्त। सुखरूप अद्वैत नामदेव॥ ४॥