भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

केशवाचे भेटी लागलें पिसें / गोरा कुंभार

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:21, 1 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संत गोरा कुंभार |अनुवादक= |संग्रह= ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

केशवाचे भेटी लागलें पिसें। विसरलें कैसें देहभान॥ १॥
झाली झडपणी झाली झडपणी। संचरलें मनीं आधीं रूप॥ २॥
न लिंपेची कर्मीं न लिंपेची धर्मी। न लिंपे गुणधर्मी पुण्यपापा॥ ३॥
म्हणे गोरा कुंभार सहज जीवन्मुक्त। सुखरूप अद्वैत नामदेव॥ ४॥