भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

निर्गुण रूपडे सगुणाचे बुंथी / गोरा कुंभार

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:24, 1 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संत गोरा कुंभार |अनुवादक= |संग्रह= ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

निर्गुण रूपडे सगुणाचे बुंथी। विठ्ठल निवृत्ति प्रवृत्ति दिसे॥ १॥
एक पुंडलिक जाणे तेथील पंथ। तुझा आम्हां चित्त भाग्य योगें॥ २॥
सभाग्य विरळे नामा पाठीं गेले। अभागी ते ठेले मौन्यजप॥ ३॥
म्हणे गोरा कुंभार नामया भोगितां उरल्या उचिता सेवूं सुखें॥ ४॥