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रंग / हरे प्रकाश उपाध्याय

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कई बार चीजों को हम
उनके रंगों से याद रखते हैं
रंगों को कई बार हम
रंग की तरह नहीं फूल, चिड़िया या स्त्री की तरह देखते हैं

रंगों की दुनिया इतनी विविध
इतनी विशाल, इतनी रोचक
कि कई बार हमें लगा है
कि हम आदमी से नहीं रंगों से करते हैं प्यार
रंगों से ही नफरत
कुछ रंग इतने प्यारे
कि हम हम उन्हें पोशाक की तरह पहनना चाहते हैं
कुछ लोगों की कुछ रंगों से नफरत भी ऐसी ही

हम हर रंग को फूल की तरह देखें
अपने पसंदीदा फूल की तरह
तो कम हो कुछ रंग भेद- मुझे ऐसा लगता है
कि रंग को हम सिर्फ फूल की तरह देखें
तो हर रंग से हो जाए धीरे-धीरे प्यार
ढेर सारे रंगों से कर-करके प्यार
बनाया जाए एक विविधवर्णी संसार...