दीवार / सुशान्त सुप्रिय
बर्लिन की दीवार
न जाने कब की तोड़ी जा चुकी थी
पर मेरा पड़ोसी
अपने घर की चारदीवारी
डेढ़ हाथ ऊँची कर रहा था
पता चला कि
वह उस दीवार पर
कँटीली तार लगाएगा
और उस पर
नुकीले काँच के
टुकड़े भी बिछाएगा
मुझे नहीं पता
उसके ज़हन में
दीवार ऊँची करने का ख़्याल
क्यों और कैसे आया
किंतु कुछ समय पहले
उसने मेरे लाॅन में उगे पेड़ की
वे टहनियाँ ज़रूर काट डाली थीं
जो उसके लाॅन के ऊपर
फैल गई थीं
पर उस पेड़ की परछाईं
उस घटना के बाद भी
उसके लाॅन में बराबर पड़ती रही
धूप इस घटना के बाद भी
दो फाँकों में नहीं बँटी,
हवाएँ इस घटना के बाद भी
दोनों घरों के लाॅन में
बेरोक-टोक आती-जाती रहीं ,
और एक ही आकाश
इस घटना के बाद भी
हम दोनों के घरों के ऊपर
बना रहा
फिर सुनने में आया कि
मेरे पड़ोसी ने
शेयर बाज़ार में
काफ़ी रुपया कमाया है
कि अब उसका क़द थोड़ा बड़ा
उसकी कुर्सी थोड़ी ऊँची
उसकी नाक थोड़ी ज़्यादा खड़ी
हो गई है
मैं उसे किसी दिन
बधाई दे आने की बात
सोच ही रहा था कि
उसने अपने घर की चारदीवारी
डेढ़ हाथ ऊँची करनी
शुरू कर दी
याद नहीं आता
कब और कहाँ पढ़ा था कि
जब दीवार आदमी से
ऊँची हो जाए तो समझो
आदमी बेहद बौना हो गया है