भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कहा पिताजी ने / सुशान्त सुप्रिय
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:51, 7 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुशान्त सुप्रिय |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया)
जब मैं नहीं रहूँगा
तब भी हूँगा मैं --
कहा पिताजी ने
जिऊँगा बड़के की
क़लम में
कविता-कहानी बन कर
बिटिया की कूची
और पेंटिंग्स में
ज़िंदा रहूँगा मैं
जीवित रहूँगा मैं
मँझले के
आत्म-सम्मान में
छोटे के
संकल्प में
जिऊँगा मैं
जैसे मेरे पिता जीवित हैं मुझमें
और अपने बच्चों में जिओगे तुम सब
वैसे ही बचा रहूँगा
मैं भी तुम सब में
ओ मेरे बच्चो--
कहा पिताजी ने हम से